दिन की ज़ू, शब की चांदनी तुम से
यूं समझ लो कि ज़िन्दगी तुम से
तुम से फूलों ने दिलकशी सीखी
मैं ने सीखी है सादगी तुम से
दौरे ज़ुल्मत से क्यूं डरूं आख़िर
मेरे आंगन मे रौशनी तुम से
तुम हो रंगत मेरे ख़यालो की
मेरे अफ़कारे – बाहमी तुम से
दिल नवाज़ी के सब हुनर दे कर
सीख ली मै ने दिलबरी तुम से
मेरे शेरों की रूह मे तुम हो
दर हक़ीक़त यह शायरी तुम से
आख़िरश मै ने सीख ली ‘अन्जुम’
क़ुव्वते – इश्क़े – दायमी तुम से
(अंजुम बदायूंनी)
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